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Sunday 7 May 2017

साहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आज

साहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आज,
कौन ज्यादा मजबूर है;
ये किनारा जो चल नहीं सकता,
या वो लहर जो ठहर नहीं सकती↫↫

Saturday 22 April 2017

चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता

ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती;
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता;
वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी;
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता⇱⇱