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Friday 14 April 2017

मुझे सूली पे चढाने की ज़रूरत क्या

आंधियां गम की चलेंगी तो संवर जाऊंगा;
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊंगा;
मुझे सूली पे चढाने की ज़रूरत क्या है;
मेरे हाथ से कलम छीन लो मैं मर जाऊंगा↫↫

Wednesday 12 April 2017

ये क़ातिलों का शहर है यहाँ तू मुस्कुराने की ज़िद

तू हवा के रुख पे चाहतों का दिया जलाने की ज़िद न कर

ये क़ातिलों का शहर है यहाँ तू मुस्कुराने की ज़िद न कर⬋⬋⬋