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Friday, 12 May 2017

बेदार हो गए किसी ख्वाब-ए-गिराँ से हम

जाने कहाँ थे और और चले थे कहाँ से हम;
बेदार हो गए किसी ख्वाब-ए-गिराँ से हम;
ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तेरी निकहतों की खैर;
दामन झटक के निकले तेरे गुलसिताँ से हम↵↵↵

Friday, 21 April 2017

वो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगी

वो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगी;
पास होकर भी कुछ दूरी सी लगी;
होंठों पे हँसी आँखों में नमी;
पहली बार किसी की चाहत ज़रूरी सी लगी⬋⬋