रोज साहिल से समंदर का नज़ारा न करो;
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो;
आओ देखो मेरी नज़रों में उतर कर ख़ुद को;
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो~~
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो;
आओ देखो मेरी नज़रों में उतर कर ख़ुद को;
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो~~